पुरानी जींस और गिटार की बातें ,छत पर चाय और दोस्तों का साथ ,
ग़ुम हो गए हैं हम, बीते पलों की चादर में गर्माहट ढूँढ़ते हुए!
कागज़ की नाव सा मन, डूब जाता है ज़रा सी बारिश की बूंदों में,
गर्मियों की शामें गँवा देते हैं ,बीते समय के जुगनुओं को पकड़ते हुए।
कुछ ख़ास थे वो, मानती हूँ- पर तब खोया था उन पलों को,
जैसे खो रहे हैं इन क्षणो को ,यूँ ही यादों के अरण्य में भटकते हुए !
आओ न – इस क्षण को जीते हैं , कल ये भी ‘बीता हुआ’ ही तो होगा,
जाड़े की धूप और गीली मिटटी की खुशबू अब भी वैसी ही है , मान लो- मुस्कुरा उठोगे ‘अब ‘ में जीते हुए।
खिड़कियों के शीशे खोलो ज़रा ,हवा में घुले चिड़ियों के शोर को आने दो,
सितारों वाली छत में थोड़े और सपने टांको- भरपूर सा जी लो, इस क्षण को गले लगाते हुए!
आराधना मिश्रा
Our Hindi poetry is better than the best. Love the expression.
Your Hindi poetry is better than the best. Love the expression.
HI Arti, Thank you for the flattering words! Cant be thankful enough for your support.
Ohh love this one……no matter how desperately we try to cling to those moments…..zindagi lives in present moment.
Dear Parul,
Much thanks for the good words. Indeed it’s the ‘moment’ that matters the most. N I reiterate, your words always motivate me .
जिसने पुरानी कोमल पंखुड़ियों की
यादों को संदूक से निकाल
संगीत में पिरोता है
वही वर्त्तमान में भी जीता है
और भविष्य के सतरंगी सपने भी बुनता है।
जो जब चाहे जो चाहे जैसा चाहे
वैसा ही ठीक उसी तरह
कर डालने जज़्बा रखता है
वह सफलता की राह पर
इस तरह निकलता है
कि लोग रास्ते की तरह देखते रह जाते हैं।
बधाई। अति सुन्दर, उत्कृष्ट रचना के लिए।
शिल्प, शब्द और विम्ब का प्रयोग उत्तम है।
I couldn’t have asked for a better comment. Thank you Prem!