चार -छः दिवस हुए जबसे तुमने ‘नये ‘ का नाम दिया,
मैं तो निरंतर हूँ , नया या पुराना कहाँ ,
किसकर कहूं , सूरज की रौशनी वही,
झिलमिलाहट सितारों की भी बदली कहाँ !
अपनी सहूलियत से बांध दिया तुम सबने मुझे
नये और पुराने की परिभाषा में ,
‘समय एक सा नहीं रहता ‘ और
‘समय के साथ बदल जाते हैं लोग ‘ जैसी पंक्तियों में !
अपने ही बदलते हुए मानदंडों
और इच्छाओं को मेरे पीछे छुपा लेते हो,
मैं तो अनवरत चलता रहता हूँ ,
तुम्हीं ‘नया’ और फिर ‘पुराना साल’ बना देते हो !
Copyright © Aradhana Mishra