भावनायें जो नदियों की तरह बहा करती थीं ,
बर्फ़ सी जमी हैं सीनों में ,
इंसानियत की परिभाषा बदल सी गयी है,
राजनीति और स्वार्थ की अभेद्य धुंध में।
दरख्तों पर लिपटी हुई ये विषाक्त बेल ,
साँस लेती है , फुसफुसाहटों की हवाओं में ,
आग सी बरसने को है थम जाओ ज़रा,
एक चिंगारी बहुत है बदलने को सब ख़ाक में।
रोको कोई उन्हें जो हाथों में लिए वज्र सा ,
न्याय की पहचान बदल देते हैं ,
देश को चूल्हा बना, अफवाहों की लकड़ी जला ,
अपनी रोटी सकते हैं।
बहुत हुआ, अपने घरौंदों की खिड़कियों से,
विश्वास की धूप को छनने दो,
न बर्फ सी जमी भावनाएं, न फुसफुसाहटों की आग,
दिलों में बस ज़रा फ़रवरी को आने दो।
Copyright © Aradhana Mishra
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Speechless I am
It is so so good
Heart touching
Beautiful poetry with a lot of essence depth and meaning
You are super talented ….a bilingual expert
Keep it flowing 🥂🥂🥂
Thank you Monisha, for acknowledging and appreciating the essence of this poetry. It really saddens ones’ heart to see this deplorable condition all around!!! Hope we become human first before anything else..and before it’s too late! Also want to reiterate that your words always feel special!
Regards
Fantastic Aradhana
Dear Ruchi,
Thank You! Your comments are always cherished. <3 <3
Regards
Wonderful Aradhana!! You have put across the sentiments so beautifully.
Dear Sana,
Thank you for being appreciative of this piece. Means a lot.
Regards
आपकी कविता सम्मोहित कर गई और किंचित् विचलित कर गई 👏👏👏
‘वाह’उस कवयित्री के लिए जिसके शब्दों में ग़जब की मिठास और गहराई है,जिसके विचारों में अद्भुत पैनापन है और जिसकी अभिव्यक्ति के हुनर में बला की खूबसूरती है…….
…….और ‘आह’ उन कोमल भावनाओं के लिए जो आज के संवेदनहीन,उदासीन और निर्दयी समाज में “नक्कार में तूती की आवाज़” का दर्जा रखती हैं ।
एक अरसे से सोये कवि की निद्रा भंग हुई और उसकी अंगराइयाँ बरबस कह उठी……
जो लिखा आपने उसको मैं
शब्दों का मधुर झ॔कार कहूँ,
या दिल में सुलगते अरमानों का
दर्द भरा चित्कार कहूँ ।
जैसा कि अक्सर होता आया है,इस टिप्पणी में भी कुछ त्रुटियों का समावेश हो गया है जिन्हें नज़रअंदाज करने का कष्ट करें ……
1.नक्कारखाने में तूती की आवाज़
2.अंगड़ाइयाँ।
आपके इस उदार ह्रदय प्रशंसा का उत्तर देने में स्वयं को किंचित ही असमर्थ पा रही हूँ। परन्तु यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आपके शब्द ऐसे गर्व की अनुभूति को जागृत कर गए, जो आप जैसे प्रबुद्ध पाठकों के आशीर्वाद से ही संभव है। अत्यंत आभार आपका।